उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुए हालाकि दो दशक ही हुए है लेकिन यहां की नौकरशाही हमेशा ही लोकतान्त्रिक सरकारों के ऊपर हावी रही है। इन दो दशकों में देश के प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा की सरकारें ही सत्ता पर काबिज रही है लेकिन इनमें से किसी भी राष्ट्रीय दल का मुख्यमंत्री इस नौकरशाही पर शिंकजा कसने की बात तो दूर हिम्मत करता भी दिखाई नहीं दिया।
हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि भुवन चन्द खडूडी अपने अल्प मुख्यमंत्रित्व काल में नौकरशाही पर अंकुश लगाने में काफी हद तक सफल रहें, जिसकी कीमत भी अन्ततः उनको नौकरशाहों के बुने जाल में फंसकर, चुनाव में पराजित होकर चुकानी पड़ी। गत दिनों प्रदेश के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री की उनके द्वारा बुलाई गई बैठक में जो बेअदबी हुई वह नौकरशाहों की धृष्टता का एक नवीनतम ज्वलंत उदाहरण मात्र है।
नौकरशाहों द्वारा एक कैबिनेट मंत्री की बेअदबी कोई पहली बड़ी घटना नहीं
प्रदेश के नौकरशाहों द्वारा एक कैबिनेट मंत्री की बेअदबी कोई पहली बड़ी घटना नहीं है। चूँकि यह घटना प्रत्यक्ष रूप से घटी जिस कारण इसने ज्यादा सुर्खियां बटोरी।
विपक्ष को भी मुख्यमंत्री को आईना दिखाने तथा जगहंसाई का बहाना मिल गया। वरना इस राज्य में जिस प्रकार नौकरशाह दिन-प्रतिदिन राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों के आदेशों की धज्जियां उडायी जा रही है|
क्या वह उनकी बेअदबी से कम मानी जानी चाहिए? देहरादून में जब काबिना मंत्री की बेअदबी हो रही थी ठीक उसी समय नैनीताल हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता राज्य के हालात पर अपनी पीड़ा बयान कर रहा था कि राज्य के नौकरशाह किस प्रकार नियमों को धता बताते हुए मनमाने ढंग से नियुक्तियां कर रहें है और राज्यपाल द्वारा इन नियुक्तियों को गलत ठहराये जाने और नियुक्त अधिकारी को तत्काल बर्खास्त करने के राज्यपाल के आदेशों की धज्जियां उडा रहें हैं।
राज्य के नौकरशाहों की धृष्टता का एक अन्य उत्कृष्ट उदाहरण समाज कल्याण विभाग छात्रवृत्ति घोटाले में निलम्बित मुख्य आरोपी गंगाराम नौटियाल की पुनः बहाली का है। उक्त नौकरशाह की पुनः बहाली किसके आदेशों से हुई इसकी जानकारी न तो विभाग के मंत्री को दी गई और न ही मुख्यमंत्री को। समाचार पत्रों से जब इसकी जानकारी मंत्रियों तक पहुंची तो सब भौचक्के रह गये। आनन-फानन में मुख्यमंत्री को नौकरशाह की पुनः बहाली के आदेश वापस लेने के आदेश देने पड़े।
लेकिन सबसे मजे की बात है कि मुख्यमंत्री अपने दाहिने हाथ बैठने वाले इन अधिकारियों के खिलाफ न तो मुंह खोलने को तैयार है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्यवाही करने की हिम्मत दिखा पा रहे हैं।
जब प्रदेश में राज्यपाल, मुख्यमंत्री और वरिष्ठ काबिना मंत्रियों की सरेआम इतनी बेअदबी करने के बावजूद भी नौकरशाह बेफिक्र होकर गैरकानूनी कामों को अंजाम देने में कोई कोताही नही बरत रहे है तो समझ लेना चाहिए कि राज्य में सरकार और शासन की क्या दशा हैं? ऐसी दशा में कई प्रश्न एक साथ उठ खडे़ होते है जिनके जबाव की सरकार से अपेक्षा की जाती है
1. क्या राज्य में मंत्रियों की ऐसी बेअदबी कब तक होती रहेगी?
2. क्या राज्य में संवैधानिक पदों पर आसीन लोग अपने पद की गरिमा की रक्षा कर पा रहे है?
3. निरकुंश नौकरशाहों पर सरकार मेहरबान क्यों है?
यह उत्तराखंड राज्य की विडंबना ही कही जायेगी कि यहां किसी भी पार्टी की सरकारें बनी हो, उसके मुख्यमंत्री को राजनीतिक अस्थितरता का सामना करना ही पड़ा जिसका परिणाम है कि 20 वर्ष की अवधि में राज्य में 8 मुख्यमंत्री बन चुके हैं, जबकि राज्य में 4 बार ही विधानसभा के चुनाव हुए।
राज्य के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे नेता रहे जो अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सके। हालाकि उनको अस्थिर करने में उन्हीं के पार्टी के कई कद्दावर नेता लगातार प्रयास करते रहे लेकिन वे तिवारी के राजनीतिक अनुभव के आगे बौने साबित हुए। 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और वरिष्ठ नेता बी.सी. खड्डी मुख्यमंत्री बने। लेकिन पार्टी के भ्रष्ट नेताओं ने भ्रष्ट नौकरशाहों की मदद से उनकी नींद हराम रखी। परिणाम यह हुआ कि 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा लोकसभा की पाँचों सीटें हार गई, फलस्वरूप खडूडी को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा।
इसके बाद निशंक जिन्होंने खडूडी को हटाने में शकुनि की भूमिका निभाई थी मुख्यमंत्री बन बैठे। उनके राज में भ्रष्ट नौकरशाहों के माध्यम से राज्य में भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं लांघ लांघ दी गई। परिणामस्वरूप भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने निशंक को मुख्यमंत्री पद से हटाने में अपनी भलाई समझी और खडूडी को पुनः मुख्यमंत्री पद पर बिठाना पड़ा।
2011 के विधानसभा चुनाव में निशंक उर्फ शकुनि ने पुनः परदे के पीछे रहकर भ्रष्ट नौकरशाहों के साथ षडयंत्र कर खडूडी को विधानसभा चुनाव में हरवा दिया। कांग्रेस पुनः सत्ता में लौटी और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने। लेकिन कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत बहुगुणा की कुर्सी छीनकर स्वयं मुख्यमंत्री बन बैठे। भष्ट्राचार के सर्वव्यापी आरोपों के कारण 2017 के चुनाव में हरीश रावत दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हार कर राजनीति में अपना रूतबा खो बैठे।
2017 में भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापस लौटी। भाजपा ने पुरानी गलतियों से सबक लेकर एक नये चेहरे को राज्य की कमान सौंपी गई लेकिन बीते 3 वर्ष का कार्यकाल ‘ढाक के तीन पात’ वाला ही रहा। मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टाॅरेन्स’ का ढोल पीट रहें है। मंत्री और नौकरशाह भ्रष्टाचार में मस्त है। जनता अपनी बेहाली पर आँसू बहा रही है।
निदेशालय और सचिवालय में बैठे अधिकारी मनमाफिक फैसले ले रहें
हालात यह है कि यहां कौन शासन चला रहा है, किसी को नहीं पता। निदेशालय और सचिवालय में बैठे अधिकारी मनमाफिक फैसले ले रहें। अयोग्य व्यक्ति को असंवैधानिक तरीकों से मनमाफिक पदों पर नियुक्त किया जा रहा है। अनेक अधिकारी वेतन से कई गुना वेतन के रूप में लेकर खजाना लूट रहे हैं। कैग के अनुसार राज्य वित्तीय आपदा का शिकार है। बिना बजटीय प्रावधान और बिना विधायिका की अनुमोदन के हजारों करोड़ रूपये गैर जरूरी कार्यो में खर्च किये जा रहे हैं।
विभागों में भ्रष्टाचार की सीमाएं लांघने की होड़ मची हुई है।सरकार ‘जितना बड़ा भ्रष्टाचारी उतना बड़ा पद’ की नीति पर चल रही है। लघु एवं मध्यम समाचार पत्र निकालने वाले पत्रकारों के लिए तरह-तरह नियम लागू कर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। जिस राज्य में संवैधानिक पदों की मर्यादा तार-तार हो तो बेचारी जनता अपना दुखड़ा किसे सुनाए?
जनता कहिन-मंत्रीजी के साथ हुई बेअदबी की घटना पर जनता चटकारे ले रही है और कह रही है, जब अधिकारी मंत्रीजी की इच्छा पूरी कर दे रहिन है तो उनको अपनी बेअदबी से क्या फर्क पड़त है… आखिर ये वही अधिकारी ही तो हैं उनको इतना बड़ा बनाइन है। वहीं मंत्रीजी के एक प्रशंसक कह रहे है कि गलती मंत्रीजी से हो गयी है।
यूं तो मंत्रीजी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में तभी पहुंचते है जब भीड़ एकत्रित हो जाती है लेकिन उस रोज बैठक में मंत्री सबसे पहले पहुँच गये और मात खा गये।
अब भले ही मंत्रीजी दुःखी न हो लेकिन उनकी हितैषी जनता जरूर अपने मंत्रीजी की बेअदबी पर दुःखी है और मंत्रीजी व मुख्यमंत्री जी से सवाल पूछ रही है कि ऐसी धृष्टता करने वालों के खिलाफ उन्होंने की कार्यवाही की? अगर तुम लोगन ने उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करत है तो इसे हम अपनी बेअदबी महसूस हुई रही है, हां… समझे! हम इतनी कमजोर नाहि है कि इतनी सी बेअदबी पर आत्महत्या कर लें, लेकिन हम मंत्रीजी और मुख्यमंत्री को अगाह करि देत है, यदि उन लोगन के खिलाफ कार्यवाही नहीं की तो हम लोगन अपने सम्मान की खातिर तुम्हारी लुटिया जरूर डूबो देत है। जिसे हमारे सम्मान की चिंता नही वो हमारा मंत्री और मुख्यमंत्री बनने लायक है नहीं, इसका फैसला हम ही करेंगे।(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)