वैसे तो भारत वर्ष में कई त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन मकर संक्रांति का कुछ विशेष महत्व है। दरअसल, यही एकमात्र त्योहार है जो देश के विभिन्न राज्यों में अलग−अलग नामों व परंपराओं के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी, गुजरात में उत्तरायण, पश्चिम बंगाल में गंगासागर मेला के नाम से व उत्तराखंड में घुघूती के नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे यानि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अतएव इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। उत्तरायणी पर्व मनाने का एक खास कारण यह भी माना जाता है शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है इस बार मकर संक्रांति के दिन से हरिद्वार में कुंभ मेला भी प्रारंभ हो रहा है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण होता है। इस दिन जप तप व दान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति को खिचड़ी, कंबल,गुड, घी,तिल और वस्त्र दान का भी विषेश महत्व है। घुघुतियाउत्तराखंड के वासी सभी यह जानते हैं कि इस त्यौहार को घुघुतिया कहा जाता है, लेकिन आज मैं आपको बताना चाहूंगी कि उत्तराखंड में इस त्यौहार का नाम घुघुतिया क्यों पड़ा।
मकर संक्रांति को खिचड़ी, कंबल,गुड, घी,तिल और वस्त्र दान का भी विषेश महत्व
इस त्योहार के संबंध में एक प्रचलित कथा के अनुसार बात उन दिनों की है, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर्भय को उसकी मां प्यार से ‘घुघुति’ के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।
उधर मंत्रीजी राजपाट की उम्मीद लगाए बैठे थे निर्भयचंद्र यानी घुघुती के पैदा होने के बाद मंत्री जी में असुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने घुघुति को मारने की योजना बनाई जिससे कि उसे राजगद्दी प्राप्त हो जाए। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर ले गया।
जब वह घुघुति को जंगल की ओर लेकर जा रहा था, तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए।
घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नजरें उस पर पड़ीं तो उसने घुघुति की माला घुघुति की मां के पास ले गए मां ने कौवे द्वारा लाई गई माला पहचान ली और राजा को सूचित किया राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है।
उसने बेटे को उठाया और महल वापस लौटे। राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के त्योहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन को धूमधाम से घुघुतिया त्योहार को मनाते हैं। मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे ‘घुघुत’ नाम दिया गया है। इसकी माला बनाकर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डालकर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं ।