उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और अन्य भाजपा शासित राज्यों में छल, ठगी, बदनीयती और समाज विशेष के प्रति गहरे विद्वेष तथा हिकारत और उसे क्रमशः रूपान्तरित कर डालने की हिंसक भावना से योजनाबद्ध धर्मान्तरण का लक्ष्य रख कर लव और निकाह का फरेब रच कर हिन्दुओं को सब प्रकार से अपमानित करने की दुष्ट योजनाओं के विरूद्ध जो कानून लाने की बात चल रही है, वह सब प्रकार से अभिनन्दनीय है। परन्तु वह कानून लाने के साथ ही समस्या के मूल स्वरूप को समझना अत्यन्त आवश्यक है।
अंग्रेजों से सौदेबाजी के साथ पावर का ट्रांसफर जिन लोगों के हाथों में हुआ, उन्होंने क्या शर्तें अंग्रेजों से मानी थीं, यह तो ट्रांसफर आफ पावर के खंडों के प्रकाशन के बाद कुछ स्पष्ट हो रहा है। भारत और इंग्लैंड की साझा संस्कृति और साझा इतिहास विकसित करने तथा पढ़ाये जाने की शर्त उसमें एक मुख्य शर्त है। स्पष्ट रूप से यह हिन्दू धर्म को क्रमशः बड़ी कुशलता से नष्ट करने की योजना का अंग है।
परंतु जो भी हो, भारत एक सम्प्रभु और स्वाधीन लोकतांत्रिक गणराज्य है। अतः अब यहां घटने वाली राजनैतिक घटनाओं की पूरी जिम्मेदारी यहां के समाज की है। परंतु हम पाते हैं कि यहां के बहुसंख्यक समाज को एक तरह के मुगालते और भ्रम में रखकर शासक दलों ने मनमानी नीतियां बनाई हैं। परंतु शासन की सफलता के लिये पूरी तरह बहुसंख्यक समाज के प्रबुद्धजनों को भी उत्तरदायी माना जायेगा, जिन्होंने किसी भी शासकीय नीति की कभी बहुसंख्यकों के हित और कल्याण की दृष्टि से समीक्षा ही नहीं की।
भारत में जो हुआ, उसका स्वरूप यह है
पश्चिमी यूरोप के देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतांत्रिक सरकारों ने बहुसंख्यकों के प्रति अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक राष्ट्र राज्य में ईसाइयत के किसी न किसी पंथ को राजधर्म घोषित कर रखा है। इसीलिये इंग्लैंड के सर्वोच्च शासक ही प्रोटेस्टेंट ईसाइयत के भी सर्वोच्च संरक्षक हैं और राज्य प्रोटेस्टेंट चर्च को भरपूर संरक्षण और सम्मान देता है तथा चर्च के विषय में कोई भी नियम केवल चर्चों की महासभा के द्वारा पारित और अनुमोदित होने पर ही संसद में केवल उन्हें पढ़कर सुनाने के बाद पारित मान लिया जाता है।
आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, इटली, स्पेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिकों को इसी प्रकार का विशेष संरक्षण और अधिकार प्राप्त है। जर्मनी में प्रोटेस्टेंट चर्च को तथा स्वीडन में लूथेरियन चर्च को यह अधिकार प्राप्त हैं। किसी भी ईसाई देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष कभी कोई गैर ईसाई नहीं बन सकता। इस प्रकार बहुसंख्यकों के रिलीजन को सर्वत्र, सर्वोपरि विधिक स्थान प्राप्त है। भारत के सभी राजनैतिक दलों के प्रमुख लोगों को ये तथ्य ज्ञात हैं। अतः भारत में वे जो कुछ कर रहे हैं, वह इस जानकारी के बावजूद कर रहे हैं।
भारत में जो हुआ, उसका स्वरूप यह है। भारत के बहुसंख्यकों के धर्म अर्थात् हिन्दू धर्म को भारत शासन द्वारा किसी भी प्रकार का संरक्षण प्राप्त नहीं है। केवल उपासना की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सामान्य अधिकार जो सभी नागरिकों को प्राप्त हैं, वे ही हिन्दुओं को भी प्राप्त हैं। वस्तुतः होना तो यह चाहिये था कि सनातन धर्म का विशेष संरक्षण भारत शासन का उसी प्रकार सर्वोपरि कर्तव्य घोषित होता, जिस प्रकार भारत से अलग होकर नेशन स्टेट बने भूखंडों-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में संविधान के द्वारा इस्लाम का पालन और अनुसरण वहां के शासन का सर्वोपरि कर्तव्य घोषित है और यह समस्त धरती इस्लाम के सर्वोच्च आराध्य देवता के लिये समर्पित घोषित की गई है।
जिस प्रकार कि संयुक्त राज्य अमेरिका सहित सभी पश्चिमी यूरोपीय राष्ट्र अपने आराध्य देवता को ही संपूर्ण धरती समर्पित मानते हैं और उनकी शपथ लेकर ही संसद के आरंभ से लेकर राष्ट्रपति आदि के पदों की शपथ तक के कार्य सम्पन्न होते हैं। इसके स्थान पर भारत के शासकों ने घोषणा तो यह की कि सभी मजहबों के प्रति वे समान व्यवहार करेंगे परन्तु बहुसंख्यकों के धर्म को किसी भी प्रकार का संरक्षण दिये बिना उन्होंने अल्पसंख्यकों के मजहबों को इकतरफा विशेष संरक्षण दे दिया। उनकी पढ़ाई और प्रसार की सरकारी खर्चे से व्यवस्था की गई जबकि सरकारी खजाने में टैक्स का तीन चौथाई से अधिक भाग हिन्दुओं के द्वारा प्राप्त होता है।
करेले पर नीम चढ़ा यह है कि स्वयं इस्लाम और ईसाइयत के भी मजहबी सिद्धांतों और मर्यादाओं का पालन सुनिश्चित करना शासन ने अपना कर्तव्य नहीं माना। इसका परिणाम यह हुआ कि ‘लॉ लेसनेस’ और विधि का उल्लंघन तथा मजहबी मर्यादाओं का उल्लंघन और अराजकता तथा मनमानी का अधिकार अल्पसंख्यकों को दे दिया गया। उदाहरण के लिये किसी भी प्रकार का नशा करना या नशीली चीजों की खेती करना या उसका धंधा करना या धंधे से किसी भी रूप में जुड़ना और इन कामों से किसी भी प्रकार का मुनाफा कमाना हदूद गुनाह है।
परंतु यह सब काम करने वाले लोग भारत में धड़ल्ले से स्वयं को मुसलमान कहते हैं। उन पर कोई अंकुश सरकार का नहीं है। स्पष्ट है कि इस्लाम की आड़ में अराजकता और मनमानी को तथा ‘लॉ लेसनेस’ को सरकारों ने संरक्षण दिया। स्पष्ट रूप से इसके द्वारा कांग्रेस तथा अन्य सरकारों ने इस्लाम की आड़ में अपराधी तत्वों को संरक्षण दिया और एक ऐसा वातावरण बना दिया जिसमें अपराधी होने के लिये मजहब की आड़ लेना सबसे सरल उपाय हो गया। औसत नागरिक हर मजहब में कायदा पसन्द करने वाला होता है। अतः इस सुविधा का लाभ केवल गलत लोगों ने उठाया, औसत मुसलमान इसका लाभ उठा ही नहीं सकता था। जाहिर है कि इन गलत लोगों को राजनैतिक संरक्षण देकर कांग्रेस तथा अन्य पार्टियां अवश्य कुछ गलत काम कराती होंगी।
धीरे-धीरे कुशल और धूर्त अपराधियों का एक महाजाल खड़ा कर दिया गया जो स्वयं को बौद्धिक दिखाने लगा और जिसने कुशलता से एक लफ्फाजी विकसित की तथा सार्वजनिक जीवन में उसे संचार माध्यमों के द्वारा प्रतिष्ठित कर दिया। साथ ही, पूरी आक्रामकता से राजनैतिक परिदृश्य पर छाने का प्रयास करने लगा। इस समूह ने ऐसे सभी हथकंडों को अपनाया जिससे बहुसंख्यक समाज की मान्यतायें और मर्यादायें तार-तार होती चली जायें। इसने प्रयास किया कि अल्पसंख्यकों को अपनी मजहबी किताबों की आड़ लेकर चाहे जो करने का अधिकार माना जाये और उनसे कभी अपनी मजहबी मर्यादा के पालन का आग्रह नहीं किया जाये।
दूसरी ओर, बहुसंख्यकों को अपने धर्मशास्त्र के किसी भी नियम के पालन की ऐसी कोई छूट नहीं दी जाये जो इन गलत लोगों की मनमानी को रोकती हो। उदाहरण के लिये, हमारी बहन बेटियों को कोई बरगला कर ले जाये तो उसके लिये ऐसे व्यक्ति और उसके संपूर्ण परिवार का नाश कर देना हिन्दू धर्मशास्त्रों में धार्मिक आदेश है। परंतु हिन्दुओं को इस धार्मिक आदेश के अनुसार चलने की कोई भी छूट शासन ने नहीं दी है।
इसके स्थान पर, हिन्दू परिवारों को एक इकाई केवल आयकर, संपत्तिकर आदि के लिये ही माना गया है और व्यवहार में परिवार का प्रत्येक वयस्क सदस्य एक स्वतंत्र नागरिक है जो अपने धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करने को पूर्ण स्वतंत्र है और अपने धर्म तथा अपने परिवार की संस्कृति और परंपरा का उपहास करने को पूर्ण स्वतंत्र है तथा शिक्षा भी ऐसी सुनिश्चित की गई कि प्रत्येक हिन्दू विद्यार्थी हिन्दू धर्म के प्रति हीनता और तिरस्कार का भाव पाले और विकसित करे।
इसी के साथ, बरगलाई जाने वाली बच्चियों को स्त्री स्वतंत्रता के नाम से अपना धर्म त्यागने के लिये भरपूर परिवेश बनाया गया और सुविधा तथा संरक्षण दिये गये। इस प्रकार, इस्लाम के नाम पर उसकी कठोर मर्यादाओं का पालन करने का अंकुश लगाने का कोई भी काम शासन ने नहीं किया परंतु इस्लाम के नाम पर बहुसंख्यकों के बच्चों और बच्चियों को बरगलाने तथा उन्हें अपना धर्म त्याग कर मुसलमान होने की अथवा ईसाई होने की प्रेरणा देने की पूरी छूट दी गई और ऐसा काम करने की प्रेरणा देने वाले शिक्षाकेन्द्रों को यानी मदरसों और ईसाई स्कूलों को सरकारी खर्चे से भरपूर अनुदान दिये जाते रहे।
स्पष्ट रूप से यह हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज के विरूद्ध इस्लाम और ईसाइयत की आड़ में गलत काम करने वालों को विशेष संरक्षण की सरकारी नीति है। इसका लाभ केवल वे ही लोग ले पाते हैं जिन्हें गलत काम करने में खुशी होती है। इस्लाम या ईसाइयत के अनुयायी समाज के साधारण लोग इन सबसे बहुत दूर रहते हैं। यह काम कांग्रेस सरकार के एक धड़े ने प्रारंभ से ही शुरू कर दिया था।
जबकि दूसरा धड़ा अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझ कर उसे निभाने की कोशिश करता था। मध्यप्रदेश सरकार ने 1952 के आमचुनाव में बहुसंख्यकों के द्वारा की जा रही मांगों के प्रति अपनी वचनबद्धता निभाते हुये चुनावी जीत के बाद मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश श्री भवानी शंकर नियोगी जी की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर दी थी जिसमें ईसाई प्रतिनिधि भी शामिल थे। कमेटी का उद्देश्य ऐसे धार्मिक मतान्तरण को रोकने के विधिक उपायों पर शोध करना था जो धर्मान्तरण पूर्णतः स्वैच्छिक ना हो। कमेटी ने 700 अलग-अलग गांवों का सघन दौरा किया और 11360 लोगों से इस विषय पर विस्तृत बातचीत की तथा 375 लोगों के लिखित वक्तव्य और अनेक लोगों केे इस विषय पर जारी प्रशनावली के लिखित उत्तर प्राप्त किये।
इस प्रकार संविधान की मूल भावना को कुचला गया
समिति ने स्कूलों, अस्पतालों और ईसाई चर्चों में जाकर जांच पड़ताल की तथा भरपूर मेहनत से दस्तावेज तैयार किये जिसमें महत्वपूर्ण सुझाव थे और अनेक उपाय सुझाये गये थे। नियोगी समिति की रिपोर्ट से अनेक ईसाई मिशनरियों और संस्थाओं की धोखाधड़ी, जोरजबरदस्ती, जालसाजी, झूठे वादे और लोगों को ललचाने के सैकड़ों प्रमाण दिये गये थे।
मध्यप्रदेश सरकार समिति की संस्तुतियों को मानने के पक्ष में थी परन्तु जवाहरलाल नेहरू जी के निर्देश पर ये संस्तुतियां रोक दी गईं और राजनैतिक तर्क यह दिया गया कि संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को ये संस्तुतियां बाधित करती हैं। इस प्रकार विधिक तथ्यों पर राजनैतिक तर्क प्रधान बनते चले गये और ऐसे राजनेता जो प्रायः बहुत कम संविधान पढ़ते हैं और उसके विशेषज्ञ बिल्कुल नहीं होते, वे अपने राजनैतिक दबावों और निर्णयों को बेझिझक और पूरी ढिठाई तथा निर्लज्जता से संविधान की आड़ में प्रस्तुत करते रहे हैं।
इस प्रकार संविधान की मूल भावना को कुचलने वाला एक बहुत बड़ा वाचाल वर्ग, कांग्रेस सरकारों ने शिक्षा संस्थानों और संचार माध्यमों में महत्वपूर्ण स्थानों पर भरती कराया और उसके द्वारा बहुसंख्यक समाज के विरूद्ध योजना पूर्वक परंतु वंचना, ठगी और धोखाधड़ी के साथ वातावरण बनाया। यह तो जाहिर है कि यह काम करने के लिये शिक्षा और संचार माध्यमों में कम प्रतिभाशाली और कम अध्यवसायी परंतु बहुत अधिक पार्टी-प्रतिबद्ध या गिरोह-प्रतिबद्ध लोगों को भर्ती करना अनिवार्य था।
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि मुसलमानों में गलत तत्वों को हिन्दू समाज के विरूद्ध योजनापूर्वक सक्रिय करने का काम कांग्रेस पार्टी तथा अन्य पार्टियों द्वारा शासन तंत्र का दुरूपयोग करते हुये किया गया है। इसी का परिणाम है कि बच्चियों को बरगलाने वाले दुष्ट मुसलमानों को ना तो अपनी बिरादरी के अच्छे लोगों का कोई भय है और ना ही हिन्दुओं के द्वारा ऐसे दुष्ट के परिवार को पूरी तरह नष्ट कर देने के धार्मिक आदेश का आचरण किये जाने की कोई आशंका है।
संविधान के दुरूपयोग के प्रति वे सरकारों के द्वारा आश्वस्त किये जाते रहे हैंं और एक लंबी अवधि तक ऐसे सब दुष्कर्मों के लिये भरपूर अवसर सुलभ कराये जाने के कारण उन्होंने प्रजातंत्र में अपने पक्ष में हुड़दंगी भरे तर्क देने वाले खोखले लफ्फाजों को बौद्धिक के रूप में प्रस्तुत करने का एक पूरा नेटवर्क ही रचने में सफलता पा ली है।
यह कुछ आशा जगाने वाली बात है कि कुछ राज्यों की भाजपा सरकारें इस पाप को रोकने की घोषणा कर रही हैं। यदि सचमुच इस पर गंभीरता से अमल हो तो यह समाज में फैल रही बेकार की बदमजगी को रोक सकेगा। परन्तु भाजपा सरकारों का भी इस विषय में कोई अच्छा रिकार्ड नहीं है। वस्तुतः इस विषय में बनने वाले किसी भी कानून में दो बातें आवश्यक होनी चाहिये।
अगर लव जिहाद के समर्थकों का यह तर्क सही है कि प्रत्येक युवती को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है तो यह सुनिश्चित होना चाहिये कि कोई भी हिन्दू युवती किसी भी मुस्लिम युवक से प्रेम संबंध के पहले हिन्दू धर्म के त्याग की पूर्वघोषणा अवश्य करे। क्योंकि इस्लाम एक राजनैतिक मजहब है और उसके राजनैतिक परिणाम होते हैं। अतः इस्लाम से बंधे किसी भी युवक से प्रेम का संबंध बनाने वाली युवती हिन्दू समाज के लिये निश्चित रूप से राजनैतिक खतरा है। अतः यह व्यवस्था आवश्यक है। ताकि यह खतरा छिपा ना रहे। खुलकर सामने आए।
साथ ही यदि युवती और युवक धार्मिक स्वतंत्रता का तर्क देते हैं तो फिर हिन्दू युवती और मुस्लिम युवक का विवाह किसी भी चरण में, किसी भी स्तर पर शरिया या मुस्लिम पद्धति से होना गैरकानूनी घोषित होना चाहिये और साथ ही इसे एक सामाजिक अपराध घोषित होना चाहिये।
इसके साथ ही, ऐसे विवाह को केवल विधिशून्य या आरंभतः शून्य घोषित करना पर्याप्त नहीं है। इसे हिन्दू समाज पर आक्रमण मानकर संज्ञेय अपराध घोषित किया जाना चाहिये और सामाजिक सौहार्द्र तथा सदभावना और भाईचारे पर जानबूझकर की जा रही चोट के रूप में इसे एक राजद्रोह और समाजद्रोह के अपराध के रूप में निर्धारित किया जाना चाहिये और तदनुकूल भारतीय दंड संहिता में इस अपराध से संबंधित एक स्पष्ट धारा जोड़ी जानी चाहिये। कम से कम इतना करना प्रत्येक सरकार का कर्तव्य है यदि उसे समाज में शांति और सुव्यवस्था की तनिक भी चिंता हो, तो।