महाकुंभ की पौराणिक, ऐतिहसिक, काल्पनिक या वैज्ञानिक चर्चाओं से हिन्दु संस्कृति एवं भावनाओं का अटूट सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को विकृत स्वरूप दिये जाने की बातें ऐसी ही है, जैसे सुर-असुर की स्पर्धा और होड़ तथा समुद्र मंथन के परिणाम स्वरूप अमृत और विष का प्रकट होना उस समय असुर-सुर अर्थात् देवताओं की पंक्ति में घुस आये और अमृतपान की लालसा में भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निशाना बन गये। उस समय की स्थितियां कई बार पैदा हुई है, और उनका दमन भी हुआ। यही कारण है कि हिन्दु संस्कृति आज तक जीवित है। भले ही उसकी गहराई तक पहुंच बहुत कम विद्वानों को है। भारत देश में जब हिन्दु संस्कृति लुप्त होने लगी और चारों दिशाओं में मर्यादाओं का दमन होने लगा, ऐसे काल में ही आदि शंकराचार्य का विष्णु रूप अवतार हुआ।
जिन्होने सूर्य तुल्य अपने प्रभाव से हिन्दु धर्म का उत्थान भारत की समस्त भूमि पर कर दिया, और देश की चारों दिशाओं में इसकी सुदृढ़ स्थापना की। ये चार दिशाएं या कहे भारत में सनातन धर्म के चार ध्वज लहरा दिये। जिन्हें आज तक पीठों के नाम से जाना जाता है। पूर्व में जगन्नाथपुरी-गोवर्धनपीठ, पश्चिम में द्वारिका-शारदापीठ, उत्तर में बद्रीनाथ-ज्योतिष्पीठ और दक्षिण में रामेश्वरम्-श्रृंगेरी पीठ। इन पीठों की व्यवस्था को अध्यात्म स्वरूप देने के लिए जगतगुरू ने इन सभी मठों को चार वेदों से सम्ब( कर दिया।
ऐसी सुदृढ़ व्यवस्था के बावजूद भी वर्तमान विवाद शंकराचार्य शब्द से जोड़ दिये गये है। इसके मूल में अर्थ में अनर्थ अर्थात् धन सम्पत्ति की लालसा ने बहुत से तथाकथित साधु समाजों से जोड़ दिया है। ताकि धर्म और श्रद्धा के नाम पर श्रद्धालुओं से बटोरे धन का बटवारा हो सकें। इसी प्रकार की धन लोलुपता से ही मंड़लेश्वरों, अखाड़ों आदि की अनगिनत आसुरी ढ़ंग की प्रवृत्तियां जोर पकड़ रही है। ऐसी प्रवृत्तियां वास्तव में आसुरी मूल की है। जो साधारण धर्म अनुयायियों को कई प्रकार के भ्रम जालों में फंसाती जा रही है। ये एक दुर्भाग्य की बात है क्योकि इसमें हिन्दु धर्म और संस्कृति को जाने-अनजाने कलंकित करने की मुहिम जोर पकड़ती जा रही है।
ऐसा लगता है कि घर को ही आग लगा दी घर के चिराग ने यह कहावत वर्तमान गतिविधियों पर चरितार्थ होती है। ऐसा लगता है कि अमृत का कलश पूरा का पूरा ही असुरों के चंगुल में फंसता जा रहा है, और इसे ध्वस्त करने के लिए भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र पर्याप्त नहीं होगा। बल्कि महाकाल महेश्वर की ही अशांति में शांति लाने वाली शक्ति ही काम कर सकती है। क्योकि इस समय एक राहु नहीं है, असंख्य राहु है। जिन्हे महेश्वर के अतिरिक्त कोई भी ध्वस्त नहीं कर सकता।
हमें आशा है कि कुम्भ-दर्शनम् के माध्यम से इन विचारों पर संत-हंस गुण ग्रहण करके सनातन धर्म की रक्षा में सहायक होंगे, और ऐसा होता है, तभी इस बर्ष का महाकुंभ पर्व वरदायक और कल्याणकारी माना जायेगा।