जीवन का ज्ञात भाग एक रेखा है जो जन्म और मृत्यु के दो बिन्दुओं पर खींची गयी है। व्यक्ति की सत्ता का वृहत भाग अज्ञात तथा इन दोनों ज्ञान बिन्दुओं से परे अदृश्य रहता है।
सामान्य व्यक्तियों को वह रूपान्तरण जिसे मृत्यु कहते हैं उसके बारे में कोई भी ज्ञान नहीं होता है। परंतु योगी जानते हैं। जिन्होने 11 द्वारों को नियंत्रित करना सीखा है वे यह जानते हैं कि इसके आगे क्या है। यही ज्ञान उनको जीवन के साथ-साथ मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करवाता है। जो इस ज्ञान को उपलब्ध हो गये हैं वे मृत्यु को अपनाते हैं और अपनेआप ही समय निर्धारित कर अपने नियंत्रण के अपना शरीर छोड़ते हैं। वे सचेत अवस्था में अपने ग्यारहवें द्वार ब्रह्मरंध से गुजरते हैं।
पूर्णता प्राप्त योगियों ने अनेक प्रकार से शरीर को छोड़ना सीखा है। हम योगियों की प्राचीन तकनीकि में से कुछ का मात्र वर्णन कर रहे हैं जिससे यह सिद्ध हो सके कि मृत्यु के सामान्य मार्ग के अतिरिक्त मृत्यु से गुजरने का एक दूसरा रास्ता भी है। सामान्य तौर पर इस तरह जो योगी मृत्यु का वरण करते हैं वे इसे महासमाधि कहते हैं। समाधि एक मानव द्वारा स्थिरता की उच्चतम स्थिति है। महा का अर्थ है महान। योगी मृत्यु को जीवन का अंत नहीं मानते बल्कि वे उस शरीर को छोड़ते हैं जो अति आवश्यक नहीं है। बस इतनी साधारण बात है।
नचिकेता को सचेत अवस्था में शरीर छोड़ने की विधि बताई गयी थी। यम ने वर्णन किया कि समस्त नाड़ियों या शरीर में उर्जा संचारण का सबसे प्रमुख मार्ग है सुषुम्ना। सुषुम्ना रीढ़ की हड्डी से ऊपर की ओर जाती है। सुषुम्ना के माध्यम से आध्यात्मिक उर्जा अथवा कुण्डलिनी शक्ति प्रवाहित होती है। सुषुम्ना मुक्ति का आधारबिन्दु है। वह जो मृत्युकाल में सुषुम्ना में प्रवेश करता है वह ब्रह्म जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करता है। अन्य समस्त मार्ग पुनर्जन्म के मार्ग हैं।
योगी शरीर छोड़ने के लिए कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करते हैं और यह उर्जा सुषुम्ना के मार्ग में प्रवेश करती है। यह आज्ञा चक्र में स्थित द्विपत्रीय कमल में पहुंचती है। योगी स्वयं की चेतना को पार्थिव सत्ता, इंद्रियों तथा नीचे के पांच चक्रों से अलग कर लेते हैं। आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करते हुए वह क्रमशः सहस्रार की ओर बढ़ता है। सिर के मध्य भाग पर ध्यान केन्द्रित करते हुए कपाल की हड्डी के दरार के मध्य से शरीर को छोड़ता है तथा असीम ब्रह्म की सत्ता में प्रवेश कर जाता है।
शरीर को छोड़ने का एक विशेष तरीका है समाधि के दौरान हिमवत् हो जाना। हिमालय के योगियों का एक विशेष समूह मृत्यु को प्राप्त करने के लिए यह पारंपरिक तरीका इस्तेमाल करता है। यह हिम समाधि कहलाती है। योगी समाधि में पहाड़ की ठंड में बैठते हैं और अपना शरीर छोड़ देते हैं। इसी प्रकार एक दूसरा तरीका जल समाधि कहलाता है। हिमालय की नदियों के गहरे पानी के अंदर योगी अपनी श्वांस रोक देते हैं और शरीर छोड़ देते हैं। स्थल समाधि उस समय की जाती है जबकि योग के एक पूर्णता प्राप्त आसन पर बैठे हुए ब्रह्मरंध्र को सचेतरूप में खोला जाए।
शरीर को छोड़ने का एक और बहुत ही विरला तरीका है। शरीर के सौर्य तंतुओं के जाल का वास्तविक आंतरिक लौ पर ध्यान केन्द्रित करते हुए शरीर को एक क्षण से सूक्ष्मतम समय में जला दिया जाता है। सब कुछ राख हो जाता है। इन समस्त पद्धतियों में कहीं कोई पीड़ा नहीं है। यह आत्महत्या नहीं है। योगी अपना शरीर तब छोड़ते हैं जब वे आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए एक उचित साधन की तरह कार्यशील नहीं रह पाता है। जब शरीर आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए किये जा रहे प्रयासों में और अधिक कार्य नहीं कर सकता तब यह बोझ समान हो जाता है। कठोपनिषद् में यम द्वारा नचिकेता को बताया गया है जीवन और मृत्यु के बाद जो है वह ज्ञान है।