द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत: दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्।
दक्षिणावर्ती शंख पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है। यह शंख जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है। इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत: होता है। ये दो प्रकार के होते हैं नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है। इसकी स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए। शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करें। प्रतिदिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य- पुष्प से पूजा करें और तुलसी दल चढ़ाएं।
इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं और खुलता है। इस शंख को देव स्वरूप माना गया है। दक्षिणावर्ती शंख के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ सम्पत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख पेट के रोग में भी बहुत लाभदायक है।
यदि पेट मे दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। विशेष कार्य में जाने से पहले दक्षिणावर्ती शंख के दर्शन करने भर से उस काम के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। शंख ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है।
इसके मध्य में वरूण, पृष्ठ में ब्रह्मा व अग्रभाग में गंगा का निवास है। इसके पूजन से मंगल ही मंगल और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ सम्पत्ति भी बढ़ती है। जहां शंखनाद और शंख पूजन होता है वहां लक्ष्मी स्थायी-वास करती हैं। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है। दक्षिणावर्ती शंख से शिवजी का अभिषेक करने से अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होता है। विशेष कार्य में जाने से पूर्व दक्षिणावर्ती शंख के दर्शन करने से वह कार्य सिद्ध होता है।
प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन सम्पत्ति में वृद्धि होती हैं। तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है। चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से सन्तान प्राप्ति होती है। जिस घर में इस शंख का पूजन होता है, वहाँ माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस शंख की उत्पत्ति भी माता लक्ष्मी की तरह समुद्र मंथन से हुई है। दूसरा कारण यह है कि यह शंख श्री हरि विष्णु को अति प्रिय है, इस शंख को विधि-विधान से घर में प्रतिष्ठित किया जाए तो घर के वास्तुदोष भी समाप्त होते हैं।
हेम मुख एवं नारायण शंख में मुँह कटा नहीं होता। हेम मुख का काठिन्य या रासायनिक घनत्व इसके परिमाण क़ी तुलना में 1:2 का अनुपात रखता है। नारायण शंख भी दक्षिणावर्ती ही होता है। किन्तु इसमें पांच या इससे अधिक वक्र चाप होते हैं। पांच से कम चाप वाले को दक्षिणावर्ती शंख कहते है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को घरो में इस शंख को रखना चाहिए। किन्तु किसी भी शंख को यदि घर में रखना हो तों उसे नित्य प्रति धोना पडेगा तथा उसमें पानी भर कर रखना पडेगा।