” मौर्य वंश ” भारतवर्ष के इतिहास का सबसे बड़ा और बहुत महत्वापूर्ण वंशो में से एक मन जाता है | इतिहासकारो के अनुसार मौर्या वंश के संस्थापक महान हिन्दू सम्राट चंद्र गुप्ता मौर्य थे, किन्तु मेरे विचार में ये सही नहीं है |
बल्कि इस वंश, इस देश और इस देश के इतिहास को इसका परिचय कराने वाले एक उच्च कोटि के कुल में जन्मे महान अर्थशास्त्री और दूरदर्शी आचार्य कौटिल्य जिन्हे आप महान चाणक्य के नाम से भी जानते है|
इनकी मातृभूमि से प्रेम और दूरदर्शिता का परिणाम ही मौर्य वंश की अस्थापना हुई थी |
मौर्य वंश कुल १३६ (३२२ इसा पूर्व – १८५ इसा पूर्व ) वर्षो तक था , जो की ५०००००० km2 के छेत्रफल में फैला हुआ था|
इस वंश में कुल १० महान सम्राटों शासन किया | इस वंश के जाति को लेकर इतिहास में बहुत मतभेद है , जैसे की समकालीन ब्राह्मण और उनकी रचना क अनुसार मौर्या वंश “शूद्र” वंश था , यदि बौध्य अथवा जैन धर्म की मने थो मौर्या “क्षत्रिय” थे |
यह एक विवादस्पद विषय है , पर सनातन धर्म क अनुशार ये शूद्र थे |
मौर्य वंश पूर्व में बंगाल से प्रारम्भ हो कर पश्चिम में कछ (गुजरात ) तक उत्तर में काबुल, हेरात , उत्तरपश्चिम में ईरान से लेकर उत्त्तर में कश्मीर से दक्षिण में कर्णाटक तक विस्तृत था | मौर्य वंश के शासक और उनके शासनकाल अवधि के साथ निम्नलिखित :-
१. सम्राट चंद्र गुप्ता मौर्य (३२२ -२९८ इसा पूर्वा ) – २४ वर्ष
२. बिन्दुसार ( २९८ -२७१ इसा पूर्व) – २८ वर्ष
३. सम्राट अशोक ( २६९- २३२ इसा पूर्व ) – ३७ वर्ष
४. कुणाल ( २३२- २२८ इसा पूर्व ) -४ वर्ष
५. दशरथ (२२८ – २२ ४ इसा पूर्व ) – ४ वर्ष
६. सम्प्रति – (२२४ -२१५ ईसा पूर्व ) -९ वर्ष
७. शालिसुक –(२१५ -२०२ ईसा पूर्व ) – १३ वर्ष
८. देववर्मन– (२०२ – १९५ ईसा पूर्व ) -७ वर्ष
९. शतधन्वन् – (१९५ -१८७ ईसा पूर्व ) -८वर्ष
१०. बृहद्रथ (१८७ -१८५ ईसा पूर्व)-२ वर्ष
संस्थापना का प्रारम्भ
जैसा की आप सब ने ये कथा अवश्य सुनी होगी के एक गौपालक के बालक्रीड़ा की अभिनय को देख कर आचार्य ने एक भविष्या क महान सम्राट को बोध होगया था , किन्तु इसकी आवश्यकता उन्हें क्यों हुई इसकी कथा कम लोग जानते है | तो इस कथा को प्रारंभ से प्रारम्भ करते है |
हमारे आचार्य बहुत दूरदर्शी और कुटिल राजनीतिज्ञ भी थे , उन्हें ज्ञात था के यवन शासक सिकंदर बहुत ही जल्दी भारत पर आक्रमण कर देगा | उस समय भारत देश के सबसे सामर्थवान साम्राट घनानंद माने जाते थे |
आचार्य घनांनद के समच्छ अपनी विचार प्रकट किए और भविष्य में होने वाले युद्ध की चेतावनी भी दी | पर घनांनद ने आचार्य के विचारों का परिहास किया और उनका अपमान भी किया |
आचार्य ने उसी समय अपने अपमान का और धनानद क घमंड को चूर करने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया की धनानद के समच्छ उससे योग्या समर्थवान बलशाली और प्रजा पालक सम्राट को लाएंगे | वहां निकल कर आचार्य ताछ्शिला की ओर प्रस्थान किये जहां मार्ग में उन्हें एक गौ चरवाहक पे उनकी दृष्टि गयी और उन्हें उस बालक में भविष्य का सम्राट दिखा |
उन्होंने उस बालक को १००० कर्षपण में खरीद कर ताछ्शिला सम्पूर्ण विद्या प्राप्त करने हेतु वेज दिया | यही बालक भविष्य में जा कर महान सम्राट और मौर्या वंश का संस्थापक चंद्र गुप्ता मौर्या बना |
चंद्र गुप्ता मौर्य
चंद्र गुप्ता का जन्म ३४० इसा पूर्व में हुआ था , इनके पिता का नाम सूर्यगुप्त स्वार्थसिद्धि मौर्य और माता नाम मुरा था | जब ये बने तब देश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं थी |
इन्होने ३१७ ई पू में अपनी सेना बनाई और सिकंदर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ कर दिया | ३२३ ई पू में सिकंदर की मृत्यु हो गई थी | इन्होने सर्वप्रथम पंजाब और सिंध में अपना अधिकार जमाया फिर मगध पे आक्रमण कर घनानंद को मारा और वह क शासक बन गए |
सिकंदर के बाद उसके उत्तरा अधिकारी सेल्यूकस को भी ३०५ ई पू में हराया और हेरात , कंधार , काबुल को अपने साम्राज्य में मिलाया | हारने के बाद सेल्यूकस ने अपनी बेटी हेलेना की शादी इनसे करवा दी और मेगस्थनीज को इनके दरबार का राजदूत बना दिया |
इनका एक उत्तराधिकारी था जिसका नाम था बिन्दुसार | अपने अंतिम समय में इन्होने जैन धर्म को अपनाया और मुनि भद्रबाहु की साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चले गए और वह उपवास से अपना देह त्याग किया |
बिन्दुसार
चंद्र गुप्त क मृत्यु क पश्चात उनके पुत्र बिन्दुसार राजगद्दी पर बैठे। बौध्य धर्म के अनुसार इन्हे सिंघसेन कहा जाता था। ये ब्राह्मण धर्म या सनातन को मानते थे। इनके शासनकाल में इन्होने व्यापर बहुत बढ़ाया।
इनके शासनकाल में २ बार ताछ्शिला में विद्रोह हुआ जिसके लिए इन्होने ने पहले सुसीम और बाद में अशोक को भेजा । जिसे अशोक ने समाप्त कर दिया इनके १०१ पुत्र थे। २४वर्ष के शासन के बाद इनकी मृत्यु होगयी।
अशोक
बिन्दुसार क उपरांत उनका पुत्र अशोक ने राजगद्दी सम्हाली। इतिहास के अनुसार अशोक क पिता सम्राट बिन्दुसार अपने जेष्ठ पुत्र सुसीम को सम्राट बनाना चाहते थे। परन्तु अशोक ने अपने ९९ भाई और पिता की हत्या कर के राजगद्दी हाशिल की और इतिहास में चंडाशोक के नाम से प्रशिद्ध हुए। इनका जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था |
इनकी माँ सुभद्रांगी थी जो की एक ब्राह्मण कन्या थी। पिता अऊर भाई क हत्या के उपरांत अशोक ने पुरे भारत को जितने का अभियान चलाया। ४ वर्षो तक उन्हें साम्राज्य विस्तार किया। उनका आखरी युद्ध कलिंग युद्ध था जिसमे लगभग १००००० लोगो की जान गयी और १५०००० लोग घायल हुए।
इस भीषण नार संघार क बाद उन्होंने ने हथियार त्याग दिए और बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघ मित्र को देश क बहार भिक्षुक बना कर भेजा। अशोक एक धार्मिक राजा थे वो प्रतिदिन १००० ब्राह्मण भोजन के उपरांत हे भोजन करते थे। ये एक कुशल शासक भी थे।
इनकी राजधानी पाटलिपुत्र में थी और उपराजधानी ताछ्शिला और उज्जैन में भी थी। इनके शासन काल में कबि कोई युद्ध नई हुआ। इनकी मृत्यु २३२ ई पू ३७ वर्ष तक साशन क उपरांत हो गई।